Thursday, April 25, 2024

कोट बर्फ़ का

कोट बर्फ़ का
पहने देवदार
पहरेदार 
 
    -अनिल सक्सेना ‘ज़ाहिर

Wednesday, April 24, 2024

पंछी खेलते

पंछी खेलते
रुपहली धरती
लगे अनूठी

    -स्नेहा देव 

रँगा गगन

रँगा गगन
बना ऐक्वेरियम
तैरें पतंगें

    -अनिल सक्सेना 

बनी अखाड़ा

बनी अखाड़ा 
राजनीतिक निष्ठा 
प्राण-प्रतिष्ठा 

    -अनिल सक्सेना ‘ज़ाहिर’

कठिन ऋतु

कठिन ऋतु
तैयार है जीवन
ज़िद जीने की

        -स्नेहा देव

अण्डे ग़ायब

अण्डे ग़ायब
बर्फ़ की पर्तों तले 
पक्षी निहारें 

    -माया बंसल 

बैंच पे लेटी

बैंच पे लेटी 
बतिया रही हिम 
नीरवता से 

    -आरती लोकेश  

ठूँठ कूटते

 ठूँठ कूटते 
नमक की डलियाँ 
मूसल बने

    -आरती लोकेश 

बिछी है बर्फ़

बिछी है बर्फ़
श्वांस को तरसती 
दूब बेचारी 

    -आलोक मिश्रा 

माँझे ने काटीं

माँझे ने काटीं 
बेशुमार पतंगें 
पक्षी के पर

-अनिल सक्सेना ‘ज़ाहिर’

बर्फ़ देखने

बर्फ़ देखने
उतरे धरा पर
आज परिंदे

    -अरुन शर्मा

ठण्डी सिंकाई

ठण्डी सिंकाई
झुलसे तन पर 
करती धरा

    -नितीन उपाध्ये

बदले चोला

बदले चोला 
तान श्वेत चादर 
धरा सुन्दरी

    -नितीन उपाध्ये

बर्फ़ ही बर्फ़

 बर्फ़ ही बर्फ़
अब धरती ने ली 
चैन की साँस

   -आलोक मिश्रा

शुभ्र चादर

 शुभ्र चादर 
बर्फ़ का ताना-बाना
सभी को ढके

    -आरती लोकेश 

बिछी हुई हैं

 बिछी हुई हैं
श्वेत नर्म चादरें 
पक्षी सिमटे 

    -रेणु चन्द्रा

रचे प्रकृति

रचे प्रकृति
सर्द उँगलियों से
उजला चित्र

    -प्रीति गोविंदराज

बर्फ़ का डेरा

 बर्फ़ का डेरा
पार्क की बेंचों पर
बैठे तो कहा

     -आलोक मिश्रा

बर्फ़ की मार

बर्फ़ की मार
चिड़ियों पर भारी
भूखी बेचारी 

      -आलोक मिश्रा 

बर्फ से ढँकी

 बर्फ से ढँकी 
चिनार की वादियाँ 
सन्नाटा व्याप्त

    -रंजना झा

बर्फ ही बर्फ

बर्फ ही बर्फ 
है सुनसान रास्ता 
आगे मंजिल 

    -मीरा ठाकुर

है बर्फ़बारी

 है बर्फ़बारी 
ये चिड़ियाँ बेचारी
भूख की मारी 

    -अनिल सक्सेना ज़ाहिर

वृक्षों के वस्त्र

 वृक्षों के वस्त्र
पत्ते, फूल  फल
छीने बर्फ़ ने

    -अनिल सक्सेना ज़ाहिर

पक्षी है मौन

 पक्षी है मौन
भारी हिमपात में 
निकले कौन

    -अनिल सक्सेना ज़ाहिर

देतीं धरना

 देतीं धरना
बर्फ़ पर चिड़िया
उजड़े घर 

    -अनिल सक्सेना ज़ाहिर